जैसे समुद्र में 3% नमक होने के कारण समुद्र दूषित नहीं होता,
वैसे परमेश्वर की संतानों को पापमय संसार के सदृश नहीं बनना चाहिए
बल्कि इस दुनिया में अच्छे शब्द और अच्छे कार्य से
नमक की भूमिका निभाते हुए पवित्र जीवन जीना चाहिए।
प्रेरित पौलुस ने रोम में स्थित चर्च के संतों को पत्र में इस प्रकार लिखा,
“संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारे मन के नये हो जाने से
तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिससे तुम परमेश्वर की भली,
और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।”
हमें स्वर्गीय माता की शिक्षाओं के अनुसार अच्छे और
सकारात्मक शब्दों को उपयोग में ले आना चाहिए।
यदि हम अच्छे शब्द, अच्छे कार्य और अच्छे स्वभाव से सुसज्जित हों,
तो हमारे वचन अच्छी भूमि में बोए जा सकते हैं।
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