नूह को परमेश्वर की आशीष पर विश्वास था, यद्यपि जहाज़ बनाते समय उसे लम्बे समय तक अकेलेपन का सामना करना पड़ा था। मूसा ने मिस्र में राजकुमार के रूप में अपनी महिमा का आनन्द लेने के बजाय परमेश्वर के लोगों के साथ दुःख सहना अधिक पसंद किया। प्रेरित पौलुस ने अनेक कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद, लोगों को स्वर्ग का राज्य देने के अवसर पर आनन्दित हुआ। इसी प्रकार, चर्च ऑफ गॉड के सदस्य भी अपने क्रूस को उठाते हुए, आनन्दपूर्वक विश्वास के मार्ग पर चलते हैं।
स्वर्गीय माता हमें हमेशा याद दिलाती हैं, "क्या हमें स्वर्ग के राज्य की आशा नहीं है?" इसलिए, चाहे वे संत हों या अग्रिम पंक्ति में काम करने वाले पुरोहित कर्मचारी, सभी को स्वर्ग के राज्य की आशीषों को देखना चाहिए जो हमारे सामने आने वाली बाधाओं से परे तैयार की गई हैं, जब हम अपना क्रूस उठाते हैं।
उसने मसीह के कारण निन्दित होने को मिस्र के भण्डार से बड़ा धन समझा, क्योंकि उसकी आँखें फल पाने की ओर लगी थीं। इब्रानियों 11:26
क्योंकि यदि तुम शरीर के अनुसार दिन काटोगे तो मरोगे, यदि आत्मा से देह की क्रियाओं को मारोगे तो जीवित रहोगे। इसलिये कि जितने लोग परमेश्वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं। . . . जब हम उसके साथ दु:ख उठाएँ तो उसके साथ महिमा भी पाएँ। क्योंकि मैं समझता हूँ कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं हैं। रोमियों 8:13-18
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